जब से 'स्टार्टअप' शब्द की देश में धूम मची है, तब से हर कोई इस नए दौर की लहर में अपने आपको ढालने की कोशिश में लग गया है। लेकिन भइया, सिर्फ आइडिया होने से कुछ नहीं होता। जैसे-जैसे समय बदल रहा है, वैसे-वैसे कंपनी के गठन के प्रारूप भी बदल रहे हैं। और अगर आप भी स्टार्टअप की दुनिया में कदम रखना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको कंपनी का सही प्रारूप चुनना होगा। चलिए, आज हम बात करेंगे उन फॉर्मेट्स की जो स्टार्टअप्स के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।
Private Limited Company:
अभी स्टार्टअप की दुनिया में सबसे ज्यादा चर्चा में है प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का प्रारूप। ये वही प्रारूप है जिसमें आपकी कंपनी को एक अलग पहचान मिलती है, जैसे आपका अपना आधार कार्ड। इसमें सबसे बड़ी बात है लिमिटेड लायबिलिटी। मतलब, अगर कुछ गलत हो गया, तो आपके पर्सनल संपत्ति पर कोई हाथ नहीं डाल सकता। और हां, इसमें शेयरधारक (shareholders) को बेहतरीन फायदे होते हैं, जो कि फंडिंग लेने में काम आते हैं। लेकिन भइया, हर अच्छी चीज़ में कुछ ना कुछ कमी भी होती है। इसमें भी अधिक प्रशासनिक ज़िम्मेदारियां होती हैं, और कुछ रूल्ज-रेग्युलेशन्स भी जिनकी पालना करना जरूरी होता है। जो लोग थोड़ा और आज़ादी चाहते हैं, वे लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (LLP) में भी अपनी कंपनी को गठित कर सकते हैं।
लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (LLP):
आपने पुराने जमाने में साझेदारी के बिजनेस के बारे में सुना होगा, जिसमें अगर बिजनेस डूब जाता, तो साझेदारों की जेब भी साथ में खाली हो जाती थी। लेकिन अब जमाना बदल गया है। LLP नाम का एक नया फॉर्मेट आ गया है बिजनेस करने का। इसमें मजेदार बात यह है कि साझेदारों को अब चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। अगर कुछ गड़बड़ हो भी जाए, तो साझेदारों की खुद की जेब पर कोई असर नहीं होगा। ये छोटे व्यापारियों के लिए काफी अच्छा ऑप्शन है।
Proprietorship और Partnership:
प्रोप्राइटरशिप मतलब एक आदमी की अपनी दुकान। इसमें अलग से रजिस्ट्रेशन और कंपनी फॉर्मेशन का चक्कर नहीं होता। जैसे आपके मोहल्ले में चाचा की चाय की दुकान, वैसी बात। जो दुकान है वो चाचा की है, जो मुनाफा है वो भी चाचा का और जो नुकसान है वो भी चाचा का। पार्टनरशिप वाला चक्कर थोड़ा अलग है। इसमें कंपनी फॉर्मेशन एक समझौते के आधार पर होता है, जिसे पार्टनरशिप डीड कहा जाता है, जिसमें ये तय होता है कि किसको क्या मिलेगा, किसकी क्या जिम्मेदारी होगी। इसमें भी बिजनेस का रिस्क पार्टनर्स मिलकर उठाते हैं।
One Person Company:
अगर आपके मन में खुद का बिजनेस शुरू करने का ख्याल है, पर आप अकेले ही चलाना चाहते हो, तो 'वन पर्सन कंपनी' का फॉर्मेट आपके लिए ही है। इसका फंडा सीधा है - सिर्फ एक ही आदमी, वही मालिक, वही सदस्य। यह कंपनी फॉर्मेशन का एक नया कॉन्सेप्ट है जिसे भारत में Companies Act 2013 के तहत लागू किया गया और सबसे बड़ी बात? इसमें वही सारे फायदे मिलते हैं जो बड़ी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों को मिलते हैं।
सही प्रारूप का चुनाव कैसे करें?
अब सवाल आता है कि इन सारे फॉर्मेट्स में से सही प्रारूप का चुनाव कैसे करें? सबसे पहले तो यह समझिए कि कंपनी गठन का प्रारूप फाइनल करना सिर्फ एक शुरुआत है, असली मेहनत तो उसके बाद शुरू होती है। सबसे पहले, आपको अपने बिजनेस मॉडल और भविष्य के प्लान्स को ध्यान में रखना होगा। अगर आप बड़ा फंडिंग उठाना चाहते हैं और आपके प्लान्स बड़े हैं, तो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी सबसे सही ऑप्शन हो सकती है। वहीं अगर आपको थोड़ा कम प्रशासनिक झंझट चाहिए, तो LLP आपके लिए सही रहेगा।
कुछ और बातें ध्यान में रखें
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कंपनी का प्रारूप बदलना इतना आसान नहीं होता। इसलिए शुरुआत में ही सोच-समझकर निर्णय लें।
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हर प्रारूप के अपने फायदे और नुकसान होते हैं, इसलिए अपने बिजनेस की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सही प्रारूप चुनें।
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कंपनी गठन के बाद प्रशासनिक जिम्मेदारियों को नजरअंदाज न करें। समय-समय पर रूल्ज और रेग्युलेशन्स की पालना करना बेहद जरूरी है।
अंत में...
स्टार्टअप की दुनिया में कदम रखना एक रोमांचक सफर है, लेकिन यह सफर आसान नहीं है। सही प्रारूप का चुनाव, निरंतर मेहनत और ठोस इरादे ही आपकी सफलता का रहस्य हैं। तो सोच-समझकर, सही प्रारूप चुनें और अपने स्टार्टअप के सपने को साकार करें।
बस भइया, इतना ही कहेंगे कि कंपनी बनाना आसान हो सकता है, लेकिन उसे सफल बनाना आपके दृढ़ संकल्प और मेहनत पर निर्भर करता है। तो बिना किसी संकोच के, आगे बढ़िए और अपने स्टार्टअप की कहानी खुद लिखिए!
Bindu Soni
To start a new business is easy, but to make it successful is difficult . So For success, choose the best." Be compliant and proactive from the beginning and choose NEUSOURCE as your guidance partner.