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Compliances का चक्कर: कंपनी के नियमों का खेल

Compliances का चक्कर: कंपनी के नियमों का खेल

अगर समझना है कि Compliances करना कितना खर्चीला हो सकता है? तो बस एक बार Compliances ना करके देखो

Compliances के चक्कर में

भारत में जब आप एक Private Limited Company खोलते हो, तो ये समझ लीजिए कि आप कानूनी और व्यावसायिक नियमों की ऐसी गाड़ी में बैठ गए हो, जिसे नियमों की सड़क पर चलाना ही पड़ेगा। सबसे पहले तो Company Act 2013 आता है, जो बताता है कि कंपनी कैसे चलेगी, खाता कैसे रखा जाएगा, और निदेशकों और शेयरधारकों की जानकारी कैसे साझा की जाएगी। ये कंपनी का बाइबल है, जो हर साल Annual Return और Balance Sheet सरकार के सामने पेश करने का हुक्म देता है। इससे सरकार को पता चलता है कि कंपनी कितना कमा रही है और कितना खर्च कर रही है, और ये भी कि कंपनी अपने वित्तीय मामलों में कितनी पारदर्शी है।

अब बात आती है Income Tax की। हर कंपनी को अपना टैक्स सही समय पर भरना होता है। अगर किसी को पैसा दिया है तो उस पर TDS कटौती करनी होती है। ये टैक्स चोरी रोकने में मदद करता है और आर्थिक व्यवस्था को सही रास्ते पर रखता है। फिर GST की बारी आती है, जो सामान और सेवाओं पर लगता है। इसे सही समय पर जमा करना जरूरी होता है, जिससे सरकार को उसकी आमदनी मिलती है और वह देश के विकास के लिए उस पैसे का इस्तेमाल करती है।

 

Regular Compliances का झमेला

कंपनी को हर साल कई तरह के Compliances का पालन करना होता है। जैसे कि, निदेशकों की बैठक आयोजित करना, उन बैठकों के मिनट्स तैयार करना, एकाउंटिंग रिकॉर्ड और Statutory रजिस्टर मेंटेन करना। TDS और GST रिटर्न्स जमा करवाना, एडवांस टैक्स जमा करना, कर्मचारियों के वेतन से PF और ESI योगदान को काट कर उसमें अपना योगदान जोड़ कर जमा करना। और हां, राज्य के आधार पर, कर्मचारियों के वेतन से Professional Tax भी काटना और जमा करना पड़ता है।

 

Annual Compliances की टेंशन

वित्तीय वर्ष के समापन के छह महीने के भीतर (आमतौर पर 30 सितंबर तक) एक AGM का आयोजन करना पड़ता है। AGM के दौरान, बैलेंस शीट और लाभ और हानि खाता प्रस्तुत करना और उनको मंजूरी देना, ऑडिटर की नियुक्ति करना शामिल है। उसके बाद, कंपनी को अपने वित्तीय लेखा को कंपनियों के रजिस्ट्रार (ROC) को AOC-4 फॉर्म के माध्यम से जमा करवाना पड़ता है। AGM के 60 दिनों के भीतर ROC के साथ वार्षिक रिटर्न (MGT-7) जमा करवाना होता है। कंपनी और निदेशकों के इनकम टैक्स रिटर्न जमा करवाना और अगर लागू हो तो GST की Annual Return भी दाखिल करना होता है।

 

Event Compliances का झोल

कंपनी में कभी भी कुछ भी बदलाव हो सकता है, जैसे कि डायरेक्टर या ऑडिटर का बदलाव, पंजीकृत कार्यालय का स्थान बदलना, पूंजी में वृद्धि करना, नए शेयर सर्टिफिकेट जारी करना, लोन लेना, MOA और AOA में बदलाव करना और कभी-कभी कंपनी का नाम बदलने की नौबत भी आ सकती है। इन सब बदलावों से संबंधित Compliances तभी करने होते हैं जब ये बदलाव होते हैं।

 

Compliances ना करना, महंगा पड़ेगा

कंपनी को समय पर सारे Compliances पूरे करने होते हैं ताकि कानूनी रूप से सही चले और अपने कर्मचारियों, ग्राहकों और समाज के प्रति जिम्मेदारी उठाए। लेकिन अगर Compliances को नजरअंदाज किया जाए तो यह बहुत महंगा पड़ सकता है। सरकार की नजरों में आकर पेनल्टी और कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, अगर समझना है कि Compliances करना कितना खर्चीला हो सकता है, तो बस एक बार Compliances ना करके देखो।

 

अंतिम शब्द

Compliances को समय पर पूरा करना हर कंपनी के लिए जरूरी होता है। ये न सिर्फ कानूनी मजबूरी है, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है जो कंपनी के प्रति कर्मचारियों, ग्राहकों और समाज का विश्वास बनाए रखती है। इस प्रक्रिया में अगर कोई भी चूक हो जाती है, तो इसके परिणाम काफी महंगे हो सकते हैं। इसलिए, अपनी कंपनी के Compliances को समय पर पूरा करना सुनिश्चित करें और एक सफल व्यवसाय की दिशा में कदम बढ़ाएं।

26 Jun

Bindu Soni
Bindu Soni

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