"निजी सीमित कंपनी का स्थापना प्रक्रिया जटिल हो सकती है, लेकिन दीर्घकालिक लाभ इसे सार्थक बनाते हैं।"
बिजनेस के फॉर्मेट की पहली पहेली
बिजनेस की दुनिया में कदम रखते ही सबसे पहली पहेली ये होती है कि कौन सा फॉर्मेट चुनें। जैसे आप कॉलेज में एडमिशन लेने जाते हैं और सोचते हैं कि कौन सा कोर्स लें, वैसे ही बिजनेस शुरू करते वक्त भी आपको यही सोचना पड़ता है। बात करें प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की, तो ये वो शानदार ऑप्शन है जो बिजनेस की गाड़ी को फुल स्पीड में दौड़ाता है। क्यों? क्योंकि यहां जोखिम की सीमा तय है। मतलब कंपनी में अगर कुछ समस्या हो जाए तो आपकी जेब पर असर नहीं पड़ेगा।
और तो और, पैसा जुटाने और धंधे को फैलाने में भी ये बढ़िया है। वहीं अगर बात करें प्रोप्राइटरशिप की, तो ये तो बिजनेस की दुनिया का वो रिक्शा है जिसे आप अकेले ही खींचते हैं। सीधी-साधी और किफायती। लेकिन ध्यान रहे, इसमें जोखिम भी आपके अपने कंधों पर है। फिर आती है पार्टनरशिप। इसे समझिए जैसे दो या दो से ज्यादा दोस्त मिलकर अपना धंधा खोल लें। यहां भी निजी जोखिम है, लेकिन हाथ बंटाने वाले ज्यादा हैं। और हां, इसका एक नया वर्जन है LLP, मतलब लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप। यहां आपकी जेब सेफ है, मतलब व्यक्तिगत रूप से आप पर कोई आंच नहीं आती।
बात करें OPC की, तो ये बिजनेस की दुनिया का वो नया खिलाड़ी है जो अकेले अपनी पारी खेलता है, लेकिन जोखिम उसके निजी सामान पर नहीं आता। एकदम तगड़ा ऑप्शन है अकेले खिलाड़ियों के लिए। सेक्शन-8 कंपनी जो समाज सेवा का झंडा गाड़ती है। ये न लाभ कमाने के लिए होती हैं, न पैसे बनाने के लिए। इनका काम होता है समाज कल्याण के लिए कुछ कर गुजरना और अंत में पब्लिक लिमिटेड कंपनी, जो बिजनेस की दुनिया की राजा होती है। यहां पूंजी जुटाने की कोई सीमा नहीं। बड़े खिलाड़ी, बड़े मैदान के लिए। ये सब बिजनेस के अलग-अलग चेहरे हैं। हर एक की अपनी खूबी, अपनी खामी। चुनिए समझदारी से, क्योंकि बिजनेस की राह में यही तो सबसे बड़ा फैसला है!
Private Limited Vs One Person Company (OPC)
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में कम से कम 2 लोगो का होना जरुरी है, लेकिन OPC में एक ही व्यक्ति सब कुछ संचालित कर सकता है। दोनों में लायबिलिटी सीमित होती है, मतलब कि आपकी व्यक्तिगत संपत्ति कंपनी के कर्जों से सुरक्षित रहती है। अगर आपके पास अपनी पूंजी है और व्यवसाय में अकेले का नियंत्रण चाहते है, तो OPC आपके लिए ठीक हो सकती है। लेकिन, अगर फंडिंग की दरकार है, तो प्राइवेट लिमिटेड ही उचित है क्यूंकि ये इन्वेस्टर्स की पहली पसंद है।
Private Limited Vs Public Limited Company
'Private Limited' में शेयरहोल्डर्स की संख्या 2 से 200 तक होती है। इसमें बाहरी लोगों को शेयर नहीं बेचा जा सकता और इसमें अधिक गोपनीयता होती है। वहीं 'Public Limited' कंपनी में शेयरहोल्डर्स की संख्या 7 से शुरू होती है और इसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं होती, लेकिन इसके साथ आती है अधिक पारदर्शिता और जांच-पड़ताल की जरूरत। अगर आप चाहते हैं कि आपकी कंपनी की जानकारी गोपनीय रहे तो 'Private Limited'। लेकिन अगर आप बड़े पैमाने पर पैसा जुटाना चाहते हैं और अधिक पारदर्शिता से काम कर सकते हैं, तो 'Public Limited' आपके स्टार्टअप के लिए सही विकल्प हो सकता है।
Private Limited Vs Section-8 Company
Private लिमिटेड के लिए Profit बनाना मुख्य उद्देश्य होता है। जबकि Section-8 कंपनी का मुख्य उद्देश्य लाभ नहीं, बल्कि समाज के लिए कुछ अच्छा करना है। यह NGOs और Welfare Organizations के लिए ज्यादा उपयुक्त है। इसे बनाने के बाद कुछ Tax बेनिफिट्स भी मिलते हैं। अगर आपका उद्देश्य पैसा कमाना है और व्यापार बड़ा करना है, तो Private लिमिटेड, लेकिन अगर आप चाहते हो कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद हो और आपका स्टार्टअप समाज के लिए कुछ करे, तो Section-8 सही ऑप्शन है।
Private Limited Vs Limited Liability Partnership (LLP)
शुरुआती खर्च की बात करें तो LLP में कम खर्च होता है, जबकि Pvt Ltd को शुरू करने में ज्यादा पैसा और समय लगता है। Pvt Ltd में शेयरहोल्डर्स होते हैं, जबकि LLP में Partners। अगर भविष्य में बिजनेस का विस्तार की बात हो तो Pvt Ltd ज्यादा उपयुक्त साबित होती है, हालांकि LLP को संचालित करना Pvt Ltd की तुलना में ज्यादा आसान है। ज्यादातर प्रोफेशनल्स सर्विस प्रोवाइडर LLP का चुनाव करते हैं।
निष्कर्ष
तो दोस्तो, जब बात आती है बिजनेस शुरू करने की, तो फॉर्मेट चुनना सबसे बड़ा फैसला होता है। हर फॉर्मेट की अपनी अलग खूबी और खामी है। समझदारी से चुनाव करें, ताकि आपका बिजनेस बिना किसी अड़चन के तेजी से आगे बढ़ सके। आखिरकार, सही फॉर्मेट ही आपके बिजनेस की नींव को मजबूत बनाता है।
Bindu Soni
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