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EP-1: 11 मिनट में आपका स्टार्टअप रोडमैप तैयार | Startup Roadmap | BEST Web Series for Startup

EP-2: स्टार्टअप आइडिया: पहला कदम सफलता की ओर | Define Your Startup Idea | Web Series for Startup

EP-3: स्टार्टअप आइडिया को लॉन्च कैसे करें? | सफल लॉन्च के लिए जरूरी टिप्स | Web Series for Startup

EP-4: स्टार्टअप की पहचान कैसे बनाएं? आसान प्रोफ़ाइल बिल्डिंग टिप्स | Web Series for Startup

EP-5: हर स्टार्टअप को पूछे जाने वाले जरूरी सवाल | Startup Success Guide | Web Series for Startup

EP-6: अपने स्टार्टअप के लिए सही नाम कैसे चुनें? | Startup Naming Guide | Web Series for Startup

EP-7: कंपनी का नाम रिजेक्ट न होने पाए, क्या करें, क्या ना करें? | Web Series for Startup

EP-8: आपके स्टार्टअप की पहचान – Logo, Slogan, और Tagline की ताकत | Startup Branding Tips 🚀

EP-9: Trademark Secrets: ट्रेडमार्क फाइल करते समय रखें ये सावधानियां | Web Series for Startups

EP-10: कौन सा Business Structure सही है? OPC, LLP, Pvt Ltd, Partnership या Proprietorship?

EP-11: देखिये Private Limited Company बनाने की दास्तान एक अनोखे अंदाज़ में | Web Series for Startup

EP-12: कंपनी पंजीकरण के बाद तुरंत करें ये 11 ज़रूरी काम (Part-1) | Web Series for Startup

EP-13: कंपनी पंजीकरण के बाद तुरंत करें ये 11 ज़रूरी काम (Part-2) | Web Series for Startup

EP-14: स्टार्टअप पेनल्टी से बचें! कंप्लायंस कैलेंडर से करें सही प्लानिंग | Web Series for Startups

EP-15: इन 11 रजिस्ट्रेशन से आपका स्टार्टअप ग्राहक का भरोसा जीत सकता है! | Web Series for Startups

EP-16: स्टार्टअप सर्टिफिकेशन: ISO, CE, GMP- क्यों ज़रूरी हैं? लाभ और प्रक्रिया | Startup Web Series

EP-17: स्टार्टअप इंडिया' स्कीम कैसे बदल सकती है आपके स्टार्टअप का भविष्य | Web Series for Startup

EP-18: आपके नए बिज़नेस की सफलता के लिए जरूरी Legal Agreements और Policies | Web Series for Startup

EP-19: GST: बिजनेस की नींव | रजिस्ट्रेशन, रिटर्न, और सभी नियम | GST for Startup in India

EP-20: बिज़नेस अकाउंटिंग: डेटा से सही फैसले कैसे लें? बैलेंस शीट, P&L और ऑडिट की पूरी जानकारी

EP-21: स्टार्टअप्स के लिए 5 बड़े टैक्स सीक्रेट्स जो बदल देगी आपका खेल! | Web Series for Startup

EP-22: TDS क्यों ज़रूरी है? इनकम टैक्स का सबसे बड़ा राज़ | Web Series for Startup

EP-23: अंत में जानिए MCA & ROC Compliances के राज! | Web Series for Startup

EP-24: जीत की तैयारी: ऑनलाइन सेल्स कैसे बढ़ाएं | सेल्स फनल | Web Series for Startup

EP-25: डिजिटल इमेज: बिजनेस को ऑनलाइन चमकाने के 10 तरीके| Web Series for Startup

EP-26: Get READY For 10x Growth With This SIMPLE Web Series Strategy

EP-27: सही बिजनेस पार्टनर कैसे चुनें? | मास्टर नेटवर्क बनाने का राज़ | Web Series for Startup

EP-28: क्या आप जानते हैं टीम बनाने का तरीका? जानिए Employee Funnel की कहानी| Web Series for Startup

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बिजनेस फॉर्मेट का सही चुनाव: Private Limited Vs Other Options

बिजनेस फॉर्मेट का सही चुनाव: Private Limited Vs Other Options

"निजी सीमित कंपनी का स्थापना प्रक्रिया जटिल हो सकती है, लेकिन दीर्घकालिक लाभ इसे सार्थक बनाते हैं।"

 

बिजनेस के फॉर्मेट की पहली पहेली

बिजनेस की दुनिया में कदम रखते ही सबसे पहली पहेली ये होती है कि कौन सा फॉर्मेट चुनें। जैसे आप कॉलेज में एडमिशन लेने जाते हैं और सोचते हैं कि कौन सा कोर्स लें, वैसे ही बिजनेस शुरू करते वक्त भी आपको यही सोचना पड़ता है। बात करें प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की, तो ये वो शानदार ऑप्शन है जो बिजनेस की गाड़ी को फुल स्पीड में दौड़ाता है। क्यों? क्योंकि यहां जोखिम की सीमा तय है। मतलब कंपनी में अगर कुछ समस्या हो जाए तो आपकी जेब पर असर नहीं पड़ेगा।

और तो और, पैसा जुटाने और धंधे को फैलाने में भी ये बढ़िया है। वहीं अगर बात करें प्रोप्राइटरशिप की, तो ये तो बिजनेस की दुनिया का वो रिक्शा है जिसे आप अकेले ही खींचते हैं। सीधी-साधी और किफायती। लेकिन ध्यान रहे, इसमें जोखिम भी आपके अपने कंधों पर है। फिर आती है पार्टनरशिप। इसे समझिए जैसे दो या दो से ज्यादा दोस्त मिलकर अपना धंधा खोल लें। यहां भी निजी जोखिम है, लेकिन हाथ बंटाने वाले ज्यादा हैं। और हां, इसका एक नया वर्जन है LLP, मतलब लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप। यहां आपकी जेब सेफ है, मतलब व्यक्तिगत रूप से आप पर कोई आंच नहीं आती।

बात करें OPC की, तो ये बिजनेस की दुनिया का वो नया खिलाड़ी है जो अकेले अपनी पारी खेलता है, लेकिन जोखिम उसके निजी सामान पर नहीं आता। एकदम तगड़ा ऑप्शन है अकेले खिलाड़ियों के लिए। सेक्शन-8 कंपनी जो समाज सेवा का झंडा गाड़ती है। ये न लाभ कमाने के लिए होती हैं, न पैसे बनाने के लिए। इनका काम होता है समाज कल्याण के लिए कुछ कर गुजरना और अंत में पब्लिक लिमिटेड कंपनी, जो बिजनेस की दुनिया की राजा होती है। यहां पूंजी जुटाने की कोई सीमा नहीं। बड़े खिलाड़ी, बड़े मैदान के लिए। ये सब बिजनेस के अलग-अलग चेहरे हैं। हर एक की अपनी खूबी, अपनी खामी। चुनिए समझदारी से, क्योंकि बिजनेस की राह में यही तो सबसे बड़ा फैसला है!

 

Private Limited Vs One Person Company (OPC)

प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में कम से कम 2 लोगो का होना जरुरी है, लेकिन OPC में एक ही व्यक्ति सब कुछ संचालित कर सकता है। दोनों में लायबिलिटी सीमित होती है, मतलब कि आपकी व्यक्तिगत संपत्ति कंपनी के कर्जों से सुरक्षित रहती है। अगर आपके पास अपनी पूंजी है और व्यवसाय में अकेले का नियंत्रण चाहते है, तो OPC आपके लिए ठीक हो सकती है। लेकिन, अगर फंडिंग की दरकार है, तो प्राइवेट लिमिटेड ही उचित है क्यूंकि ये इन्वेस्टर्स की पहली पसंद है।

 

Private Limited Vs Public Limited Company

'Private Limited' में शेयरहोल्डर्स की संख्या 2 से 200 तक होती है। इसमें बाहरी लोगों को शेयर नहीं बेचा जा सकता और इसमें अधिक गोपनीयता होती है। वहीं 'Public Limited' कंपनी में शेयरहोल्डर्स की संख्या 7 से शुरू होती है और इसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं होती, लेकिन इसके साथ आती है अधिक पारदर्शिता और जांच-पड़ताल की जरूरत। अगर आप चाहते हैं कि आपकी कंपनी की जानकारी गोपनीय रहे तो 'Private Limited'। लेकिन अगर आप बड़े पैमाने पर पैसा जुटाना चाहते हैं और अधिक पारदर्शिता से काम कर सकते हैं, तो 'Public Limited' आपके स्टार्टअप के लिए सही विकल्प हो सकता है।

 

Private Limited Vs Section-8 Company

Private लिमिटेड के लिए Profit बनाना मुख्य उद्देश्य होता है। जबकि Section-8 कंपनी का मुख्य उद्देश्य लाभ नहीं, बल्कि समाज के लिए कुछ अच्छा करना है। यह NGOs और Welfare Organizations के लिए ज्यादा उपयुक्त है। इसे बनाने के बाद कुछ Tax बेनिफिट्स भी मिलते हैं। अगर आपका उद्देश्य पैसा कमाना है और व्यापार बड़ा करना है, तो Private लिमिटेड, लेकिन अगर आप चाहते हो कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद हो और आपका स्टार्टअप समाज के लिए कुछ करे, तो Section-8 सही ऑप्शन है।

 

Private Limited Vs Limited Liability Partnership (LLP)

शुरुआती खर्च की बात करें तो LLP में कम खर्च होता है, जबकि Pvt Ltd को शुरू करने में ज्यादा पैसा और समय लगता है। Pvt Ltd में शेयरहोल्डर्स होते हैं, जबकि LLP में Partners। अगर भविष्य में बिजनेस का विस्तार की बात हो तो Pvt Ltd ज्यादा उपयुक्त साबित होती है, हालांकि LLP को संचालित करना Pvt Ltd की तुलना में ज्यादा आसान है। ज्यादातर प्रोफेशनल्स सर्विस प्रोवाइडर LLP का चुनाव करते हैं।

 

निष्कर्ष

तो दोस्तो, जब बात आती है बिजनेस शुरू करने की, तो फॉर्मेट चुनना सबसे बड़ा फैसला होता है। हर फॉर्मेट की अपनी अलग खूबी और खामी है। समझदारी से चुनाव करें, ताकि आपका बिजनेस बिना किसी अड़चन के तेजी से आगे बढ़ सके। आखिरकार, सही फॉर्मेट ही आपके बिजनेस की नींव को मजबूत बनाता है।

21 Jun

Bindu Soni
Bindu Soni

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