“सच्ची साझेदारी वहीं शुरू होती है जहाँ दोनों पक्ष समझौते पर हंसकर मुहर लगाते हैं।”
बिजनेस पार्टनरशिप में सबसे जरूरी चीज़ क्या है? डील फाइनल करना? या फिर सेल्स टारगेट पूरा करना? जी नहीं, जनाब! असली खेल शुरू होता है एग्रीमेंट स्टेज में। जी हां, वो स्टेज जहाँ सब कुछ ऑफिशियल हो जाता है। आपने हाथ मिलाया, पार्टनरशिप की बात की, अब बारी है सब कुछ कागज पर उतारने की। इसे कहते हैं - एग्रीमेंट स्टेज, और यही है बिजनेस पार्टनर फनल का तीसरा और सबसे क्रिटिकल राउंड।
तो चलिए, आज हम इसी एग्रीमेंट स्टेज की बात करते हैं। समझते हैं कि ये स्टेज क्यों अहम है, कैसे इसे सही तरीके से हैंडल किया जाए, और किस तरह से यह आपकी पार्टनरशिप को एक लंबी और मजबूत डगर पर ले जाता है। और हाँ, इस दौरान कुछ मज़ेदार बातें भी करेंगे, ताकि आप बोर न हो जाएं!
एग्रीमेंट स्टेज: रिश्ते को कागज पर उतारना
अब तक आपने और आपके संभावित बिजनेस पार्टनर ने सब कुछ अनौपचारिक रूप से डिस्कस किया होगा। कभी फोन पर, कभी मीटिंग्स में, और कभी-कभी सिर्फ चैट के जरिए। लेकिन एग्रीमेंट स्टेज में सब कुछ फाइनल होता है। यहाँ बातें कागज पर आती हैं, और वो भी लीगल तरीके से।
माना कि बिजनेस में भरोसा बहुत जरूरी है, लेकिन कागज पर मुहर लगाना भी उतना ही जरूरी है। आखिरकार, कोई रिश्ता तभी पक्का माना जाता है जब दोनों पार्टियाँ हंसते हुए उस पर साइन करती हैं। इस एग्रीमेंट में दोनों पक्षों की जिम्मेदारियों का साफ-साफ जिक्र होता है, जैसे कि:
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सप्लाई कब और कैसे होगी
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पेमेंट की शर्तें क्या होंगी
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क्वालिटी कंट्रोल कैसे होगा
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अगर कोई विवाद हो, तो उसे सुलझाने की प्रक्रिया क्या होगी
और सबसे बड़ी बात, इसमें समझौते का नवीकरण भी शामिल होता है। ताकि आप और आपके पार्टनर बिना किसी उलझन के समय-समय पर एग्रीमेंट को अपडेट कर सकें।
सप्लायर्स के साथ एग्रीमेंट: "सही माल, सही दाम"
सप्लायर्स के साथ एग्रीमेंट करते वक्त सबसे पहली चीज़ जो आपको करनी चाहिए वो है: स्पष्ट बातचीत। आपको सप्लायर से साफ-साफ बात करनी होगी कि:
कई बार सप्लायर्स से बात करते वक्त थोड़ा झिझक होती है, लेकिन याद रखिए, यही वो स्टेज है जहाँ आपको अपनी शर्तें साफ-साफ रखनी होंगी। अगर बात साफ नहीं होगी, तो बाद में “तू-तू, मैं-मैं” हो सकती है।
फ्रेंचाइजी के साथ एग्रीमेंट: "ब्रांड बचा के रखना है, बॉस!"
फ्रेंचाइजी का मतलब है कि कोई और आपकी ब्रांड के नाम पर काम करेगा। तो इस एग्रीमेंट में सबसे जरूरी चीज है कि आपका ब्रांड डैमेज न हो।
यहाँ ब्रांड वैल्यू और मानकों को बनाए रखना सबसे अहम होता है। एग्रीमेंट में ये साफ होना चाहिए कि:
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फ्रेंचाइजी को क्या सपोर्ट मिलेगा (जैसे कि ट्रेनिंग और मार्केटिंग सपोर्ट)
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ब्रांड गाइडलाइंस क्या हैं?
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फाइनेंशियल शर्तें क्या होंगी (रॉयल्टी, इनिशियल इन्वेस्टमेंट, आदि)?
कई बार फ्रेंचाइजी की तरफ से डिमांड आती है कि उन्हें ज्यादा आजादी मिले, लेकिन आपको उन्हें समझाना होगा कि ब्रांड का नाम आपकी सबसे बड़ी पूंजी है, और इसे बचाकर रखना जरूरी है।
एफिलिएट्स, रीसेलर्स और एजेंट्स के साथ एग्रीमेंट: "कमीशन का खेल"
अब बात करते हैं एफिलिएट्स, रीसेलर्स, और एजेंट्स की। इनके साथ एग्रीमेंट में सबसे जरूरी चीज होती है कमीशन की दरें और बिक्री के लक्ष्य।
साथ ही, आपको ये भी सुनिश्चित करना होगा कि ये पार्टनर आपके प्रोडक्ट को प्रमोट कैसे करेंगे? और उन्हें इसके लिए कौन सा सपोर्ट मिलेगा?
यहाँ पर एक और जरूरी चीज़ होती है – बिक्री की रिपोर्टिंग और पेमेंट की प्रक्रिया। सब कुछ पारदर्शी होना चाहिए, वरना बाद में बवाल हो सकता है।
चैनल पार्टनर्स, रिटेलर्स और होलसेलर्स के साथ एग्रीमेंट: "दाम और डिस्ट्रीब्यूशन"
चैनल पार्टनर्स, रिटेलर्स और होलसेलर्स के साथ काम करना थोड़ा टेक्निकल हो सकता है। इनके साथ एग्रीमेंट में मुख्य बात होती है:
इसके अलावा, एग्रीमेंट में ये भी तय होना चाहिए कि अगर कोई स्पेशल ऑफर्स या डिस्काउंट्स हों, तो उसकी शर्तें क्या होंगी। इन पार्टनर्स को आपके प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग और प्रमोशन के लिए क्या सपोर्ट मिलेगा, ये भी एग्रीमेंट का हिस्सा होना चाहिए।
एग्रीमेंट साइन करते वक्त ध्यान रखने वाली बातें
अब आपने पार्टनरशिप करने का मन बना लिया है और एग्रीमेंट की बारी है, तो इन चीजों का ध्यान जरूर रखें:
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साफ और सीधी बात: एग्रीमेंट में कोई भी प्वॉइंट अस्पष्ट न रहे। सब कुछ क्लियर होना चाहिए, ताकि बाद में कोई कन्फ्यूजन न हो।
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समझौते का नवीकरण: यह सुनिश्चित करें कि एग्रीमेंट समय-समय पर रिव्यू होता रहे। इससे दोनों पक्षों को फायदा होता है और चीजें अप-टू-डेट रहती हैं।
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डिस्प्यूट सॉल्विंग प्रोसेस: अगर भविष्य में कोई विवाद हो जाए, तो उसे सुलझाने की प्रक्रिया पहले से तय होनी चाहिए।
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ट्रांसपेरेंसी: हर शर्त ट्रांसपेरेंट होनी चाहिए, ताकि दोनों पक्षों को पता हो कि वो क्या कर रहे हैं और क्या नहीं।
आख़िर में...
तो जनाब, एग्रीमेंट स्टेज सिर्फ कागज पर साइन करने का नाम नहीं है, बल्कि यह भरोसे की नींव है। जब दोनों पार्टियां हंसते हुए समझौते पर साइन करती हैं, तभी असली पार्टनरशिप शुरू होती है। साफ-साफ बातें, स्पष्ट शर्तें, और ट्रांसपेरेंसी यही वो चीजें हैं जो आपकी पार्टनरशिप को लंबी उम्र देती हैं।
तो अगली बार जब आप किसी बिजनेस पार्टनर के साथ एग्रीमेंट स्टेज पर हों, तो ये याद रखें कि यह महज एक डॉक्यूमेंट नहीं है, यह आपके रिश्ते की बुनियाद है। और इसे उतनी ही समझदारी से हैंडल करना जितनी कि आप अपने बिजनेस को करते हैं।
Bindu Soni
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