भारतीय व्यापार में जब से GST (Goods and Services Tax) आया है, तब से आयात-निर्यात का सीन काफी हद तक बदल गया है। जीएसटी के आने से पहले टैक्स का मामला इतना कॉम्प्लिकेटेड था कि छोटे व्यापारी और बड़े खिलाड़ी, दोनों ही इससे परेशान रहते थे। लेकिन GST के आने से इस पूरे सिस्टम को एक नया लेवल मिल गया है।
पहले तो समझते हैं कि GST ने आयात-निर्यात के लिए क्या-क्या चेंज किया है। अगर आप एक ट्रेडर हैं और इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का धंधा करते हैं, तो ये बातें आपको जरूर पता होनी चाहिए।
आयात पर GST का रोल
जीएसटी के तहत आयात का मतलब सिर्फ सामान लाना ही नहीं है, इसमें सर्विसेज भी आती हैं। इम्पोर्टर्स को बेसिक कस्टम्स ड्यूटी (BCD) और इंटीग्रेटेड GST (IGST) देना पड़ता है। अब BCD की दरें तो वही रहती हैं जो पहले थीं, लेकिन IGST का मामला थोड़ा अलग है। पहले जहां MRP के आधार पर टैक्स लगता था, अब लेनदेन मूल्य (transaction value) के हिसाब से IGST लगेगा।
माल लाए और बेचे, यानी 'इम्पोर्ट एंड सेल' मॉडल के तहत, जो IGST आप इम्पोर्ट के टाइम पर भरते हैं, उसका क्रेडिट आपको मिल जाता है। इससे आपकी लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है। अगर आप किसी विदेशी सर्विस का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आपको 'रिवर्स चार्ज' के तहत टैक्स भरना होगा। ये इसलिए ताकि सरकार को टैक्स के मामले में कोई नुकसान न हो।
निर्यात पर GST का असर
निर्यात के मामले में GST ने एक बड़ा फायदा दिया है – आपको कोई टैक्स नहीं भरना पड़ता। जी हां, एक्सपोर्ट पर GST की दरें ज़ीरो हैं, यानी आप बिना टैक्स के माल या सेवाएं बाहर भेज सकते हैं। और अगर आपने कोई इम्पोर्टेड सामान या सर्विस ली है, तो उस पर जो IGST भरा है, उसका क्रेडिट भी आप ले सकते हैं।
ये नहीं, आपको उन इनपुट्स पर भी टैक्स रिफंड मिल सकता है, जिनका इस्तेमाल आपने एक्सपोर्ट के लिए किया है। इस तरह से आपका प्रोडक्शन सस्ता पड़ता है और क्वालिटी में भी इम्प्रूवमेंट होता है। इसका सीधा फायदा ये है कि आपके प्रोडक्ट्स इंटरनेशनल मार्केट में और ज्यादा कम्पेटिटिव हो जाते हैं और भारत से एक्सपोर्ट भी बढ़ता है।
माना हुआ निर्यात (Deemed Exports)
अब बात करते हैं Deemed Exports की। ये थोड़ा सा टेक्निकल है लेकिन अगर आप इसको समझ गए तो आपका धंधा और चमक जाएगा। जब कोई सामान किसी ऐसे इंडस्ट्री को दिया जाता है जो निर्यात के लिए डेडिकेटेड है, जैसे EOU (Export Oriented Units) या टेक्नोलॉजी पार्क्स, तो इसे माना हुआ निर्यात कहा जाता है।
मान लीजिए राजस्थान का व्यापारी 'A' ने 'B' को सामान बेचा, जो एक EOU में है। 'B' ने वही सामान जर्मनी के ग्राहक 'C' को बेच दिया। अब 'A' से 'B' को होने वाली आपूर्ति को माना हुआ निर्यात कहा जाएगा, और 'B' से 'C' को होने वाली आपूर्ति असली निर्यात होगी।
Deemed Exports में टैक्स आपको पहले भरना पड़ेगा, फिर आप रिफंड का क्लेम कर सकते हैं। इसमें या तो सप्लायर टैक्स रिफंड का क्लेम कर सकता है या फिर रिसीवर, लेकिन दोनों एक साथ नहीं कर सकते।
एक्सपोर्ट पर रिफंड क्लेम के लिए जरूरी डॉक्युमेंट्स
अब बात आती है रिफंड क्लेम करने की। इसके लिए आपको कुछ जरूरी डॉक्युमेंट्स की जरूरत होगी, जैसे कि ड्यूटी के पेमेंट का रिटर्न, इनवॉइस की कॉपी, और एक प्रूफ कि टैक्स का बोझ आपने आगे नहीं बढ़ाया है। इसमें CA का सर्टिफिकेट भी चाहिए होता है।
इसके अलावा, गवर्नमेंट अगर कुछ और डॉक्युमेंट्स मांगती है, तो वो भी आपको देना पड़ेगा। Deemed Exports में भी यही रूल लागू होता है। बिना टैक्स भरे आप इसे नहीं बेच सकते। टैक्स भरने के बाद ही आप या तो सप्लायर या फिर रिसीवर, रिफंड के लिए क्लेम कर सकते हैं।
निष्कर्ष
GST ने आयात-निर्यात के बिजनेस को काफी हद तक आसान बना दिया है। जीएसटी ने कर प्रणाली को एक समान कर दिया है, जिससे न केवल व्यापारिक प्रक्रियाओं में सरलता आई है बल्कि भारतीय उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ी है। हालांकि, इसके नियम और प्रक्रियाओं की नवीनता के कारण कभी-कभी व्यापारियों को कठिनाई होती है, लेकिन सही जानकारी और प्रैक्टिस से आप इन चुनौतियों को आसानी से पार कर सकते हैं।
जैसा कि किसी भी सिस्टम में होता है, GST में भी कुछ समस्याएं हैं, लेकिन अगर आप इसके रूल्स और रेगुलेशंस को अच्छे से समझ लें, तो ये आपको इंटरनेशनल मार्केट में सफल बना सकता है। GST ने आयात-निर्यात व्यापार को एक नई दिशा दी है और इसके फायदे लम्बे समय में जरूर दिखेंगे।
तो, अगली बार जब आप इम्पोर्ट या एक्सपोर्ट के बारे में सोचें, तो GST को ध्यान में रखकर अपने प्लान्स बनाएं और देखिए कि कैसे आपका बिजनेस एक नई ऊंचाई पर पहुंचता है।
Bindu Soni
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