जब भी बात बिजनेस पार्टनरशिप की आती है, तो एक बात तो पक्की है—इसे अकेले खेलकर आप ज्यादा दूर तक नहीं जा सकते। इसलिए, अगर आप तेज़ी से नहीं, बल्कि लंबे समय तक और मज़बूती से बिजनेस करना चाहते हैं, तो सही पार्टनर चुनना सबसे अहम होता है। बिजनेस पार्टनरशिप एक रिश्ते की तरह होती है। जैसे रिश्तों में हमें एक-दूसरे की फीलिंग्स समझनी होती हैं, वैसे ही बिजनेस में भी हमें अपने पार्टनर्स के इरादों और उम्मीदों को समझना होता है। आज हम बात कर रहे हैं बिजनेस पार्टनरशिप के उस अहम मोड़ की, जिसे कहा जाता है इंटेंट स्टेज।
इंटेंट स्टेज – पार्टनरशिप का दिल
इंटेंट स्टेज यानी वो स्टेज जहां संभावित बिजनेस पार्टनर्स के इरादों की थाह ली जाती है। इस स्टेज में आपको यह समझना होता है कि सामने वाला व्यक्ति सिर्फ फटाफट पैसा कमाने के लिए साथ आ रहा है या फिर उसे लंबी पारी खेलनी है। ये स्टेज बहुत ही क्रूशियल होती है क्योंकि यहां से ही पार्टनरशिप का असली गेम शुरू होता है। सोचिए, आप किसी सप्लायर को अपनी सप्लाई चेन में शामिल करना चाहते हैं, लेकिन वो सिर्फ छोटे मुनाफे के चक्कर में है, जबकि आपको लंबे टर्म की प्लानिंग करनी है—ऐसे में तो खेल बिगड़ ही जाएगा न?
इसलिए इंटेंट स्टेज पर आपको ना सिर्फ खुद के गोल्स सामने रखने होते हैं, बल्कि ये भी देखना होता है कि आपका पार्टनर आपके विज़न को कैसे देखता है। अगर फ्रैंचाइज़ी पार्टनर चुन रहे हैं, तो उनकी बिजनेस स्ट्रेटेजी, मार्केट नॉलेज और आपके ब्रैंड के प्रति उनकी डेडिकेशन पर भी नज़र रखनी होगी। ये स्टेज आपको रिश्ते को मजबूत बनाने का मौका देती है, जहां आप दोनों एक दूसरे के गोल्स को समझते हैं और उनके साथ आगे बढ़ने का रास्ता तय करते हैं।
बातचीत – इस रिश्ते की जान
इंटेंट स्टेज पर कम्युनिकेशन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। यहां आपको साफ-साफ बातचीत करनी होगी—ना सिर्फ अपने गोल्स को लेकर बल्कि आपके संभावित पार्टनर के गोल्स को लेकर भी। इंटेंट क्लियर होना बहुत जरूरी है, नहीं तो आगे जाकर बिजनेस पार्टनरशिप में बड़ी समस्याएं आ सकती हैं। इसलिए, जरूरी है कि आप खुलकर बात करें और ईमानदारी से पार्टनर के इरादों को समझें।
यहां तक कि जब आप बड़े कॉरपोरेट डील्स कर रहे हों या छोटे सप्लायर्स से बात कर रहे हों, ट्रांसपेरेंसी सबसे बड़ी चीज़ होती है। अगर शुरुआत में ही चीजें साफ नहीं हुईं, तो आगे चलकर ये मिसमैच आपकी पार्टनरशिप को डुबा सकती है।
कंटेंट – दिलचस्पी को पहचानें
इंटेंट स्टेज पर आप जो भी कंटेंट शेयर करते हैं, उसका मकसद एकदम साफ होना चाहिए—दूसरी पार्टी की दिलचस्पी का पता लगाना। इसके लिए आप पोल्स, क्विज़, या गूगल फॉर्म्स जैसे इंटरएक्टिव टूल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। ये टूल्स आपको यह जानने में मदद करेंगे कि सामने वाला कितनी गहरी रुचि रखता है और क्या वह आपके बिजनेस मॉडल के साथ लंबी दौड़ में चलने वाला है या नहीं।
जब आप उनसे ये जानकारी लेते हैं, तो एक तरह से यह उनका इंटरेस्ट लेवल मापने का तरीका भी होता है। और अगर उन्हें आपके कंटेंट में कुछ खास नहीं लगा, तो शायद वह इस पार्टनरशिप के लिए सही चॉइस नहीं हैं। इस स्टेज पर आपका फोकस होना चाहिए कि सही लोगों को अगले स्टेज तक पहुंचाना।
CRM – पार्टनर्स को याद रखिए
CRM (Customer Relationship Management) एक ऐसा टूल है, जो आपको पार्टनर्स की हर डिटेल ट्रैक करने में मदद करता है। अब सोचिए, आपने अपने संभावित पार्टनर के साथ एक बार मीटिंग की, फिर दो महीने बाद उनसे बात की और आपको उनकी कुछ बातें याद ही नहीं। ऐसे में इम्प्रेशन कैसा बनेगा? CRM आपके लिए ये काम आसान कर देता है। इससे आप हर पार्टनर के साथ हुई बातचीत का रिकॉर्ड रख सकते हैं, उनकी पसंद-नापसंद और जरूरतें समझ सकते हैं।
आप आसानी से देख सकते हैं कि कौन सा पार्टनर किस स्टेज पर है और कौन से संभावित पार्टनर में कितनी दिलचस्पी है। इसके हिसाब से आप अगला स्टेप तय कर सकते हैं—उसे आगे ले जाने के लिए क्या कंटेंट देना है या कब फॉलो-अप करना है। CRM आपके पार्टनरशिप प्रोसेस को ऑर्गनाइज़ रखने का सबसे बड़ा हथियार है।
ड्रिप कैम्पेन – धीरे-धीरे, मगर असरदार
अब आते हैं ड्रिप कैम्पेन पर। नाम से ही साफ है—धीरे-धीरे, ड्रिप करके कंटेंट देना। इसका मकसद आपके संभावित पार्टनर को लगातार बिजनेस के बारे में अपडेट देना और साथ ही उनके दिमाग में जगह बनाना है। आप रेगुलर इंटरवल पर ईमेल्स, मैसेजेज, या ऑफर्स भेज सकते हैं, जिनसे आपके बिजनेस का सही इम्प्रेशन बने और वो आपके साथ लॉन्ग-टर्म रिलेशन बनाने के लिए तैयार हो जाएं।
कई बार ये भी होता है कि सामने वाला आपकी बातों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं देता। यहां ड्रिप कैम्पेन काम आता है। लगातार उनके सामने बने रहना और समय-समय पर उन्हें अपडेट्स देते रहना, उनकी दिलचस्पी को बनाए रखने का बढ़िया तरीका है।
मैनुअल सपोर्ट – एक पर्सनल टच
जब बात होती है इंटेंट स्टेज की, तो मैनुअल सपोर्ट यानी पर्सनल अटेंशन बहुत जरूरी होता है। कभी-कभी आपके संभावित पार्टनर्स को ऐसा लगता है कि वे अभी तक पूरी तरह से कन्विंस नहीं हुए हैं, तो ऐसे में आपकी टीम का तुरंत सपोर्ट काम आता है।
कॉल्स, ईमेल्स, या फिर पर्सनल मीटिंग्स के जरिए उनकी शंकाओं का समाधान करना, उन्हें सही जानकारी देना और उनका कॉन्फिडेंस बढ़ाना, ये सब मैनुअल सपोर्ट में आता है। इस पर्सनल अटेंशन से आपका कनेक्शन स्ट्रॉन्ग होता है और ये जाहिर होता है कि आप सच में उनके बिजनेस को सीरियसली लेते हैं।
नतीजा – मिलाकर चलना ही दूर तक ले जाएगा
तो कुल मिलाकर बात ये है कि इंटेंट स्टेज पर आपको अपने संभावित पार्टनर्स के इरादों को पहचानना होता है और यह देखना होता है कि वे आपके बिजनेस विज़न के साथ कितने मेल खाते हैं। पोल्स, CRM, ड्रिप कैम्पेन और मैनुअल सपोर्ट, इन सबका सही तरीके से इस्तेमाल करके आप अपने संभावित पार्टनर्स के साथ बेहतर संवाद कर सकते हैं और एक मजबूत रिश्ते की नींव रख सकते हैं।
आखिरकार, “अकेले चलो, तेज चलो; साथ में चलो, दूर चलो” का मतलब ही यही है कि बिजनेस पार्टनरशिप में सही इरादों और बेहतर समझ के साथ चलना आपको दूर तक ले जाएगा।
Bindu Soni
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